(लेनिन री मौत माथै)

बंद कर्‌यां पैली बां, बींनैं मकबरै

दिनड़ै रै चानणै सूं आघो करतां

पांच दिन’र रातां पसर्‌यो सभाघर

सांत बो सूतो।

हालता रया लोग, अणपार पंगत में

धजावां अधर लियां झुकती नीचै

मुखड़ो कुमळावतो जोवण नैं उण रो

छाती पर दीपै लाल पदक जिण रो।

धरती रै माथै, जिका छोडी-छिटकाई

इसो घरो पाळो जावै हो जकड़्यां

लागै हो जाणै, नैचै बो लेयग्यो

म्हारी निवांसां रो सीर सागै।

कोई सोयो नईं, मास्को पांच रात

कारण, बो नींदां में रयो सूतो।

चांद चौकीदार दियो पोरो खरो

कुमळातो अर उदास हुवतो।

स्रोत
  • पोथी : लेनिन काव्य कुसुमांजळी ,
  • सिरजक : वियरा इनवर ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा (जयपुर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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