1) नीसांणी

हौकर नाहर होवतां, सिंधुर थरणाया।
बिरछां बंदर हूकिया, गिरवर गरणाया॥
वारण बिसद बिडारतां, भंवरा भरणाया।
करी निसाणी कोड कर, विध विध वरणाया।
तो जांणक अद्री ऊपरां, असनी झरणाया॥1॥

गहरी रुत गिणगौर की, घन गरजै आकर।
गिड़ा पड़ंतां देखनै, बोली चिंता कर॥
ओळां झड़ नांहिन अली, तुम पेखहुं जाकर।
तो विरहणतिय भख्ख बदरां थूके चूसाकर॥2॥

षोडस भूषण साजिया कर कोड क्रसोदर
आभ्रन बारै अंग पर, सुभ ओपै सुंदर॥
मुळकंती महलां चढ़ी, मिळती इण कद्दर।
तो जांण चमंकी बीजळी, घण गहरै बद्दर॥3॥

भागां मोती सारखा, वूठा घणां बादर।
सरिता मिळी समंदरां, भरिया सर खादर॥
मोद वधावै मोरिया, दूजा फिर दादर।
तो मघवा धर पर महर कर दै दूणौ आदर॥4॥

आयो चढ़ बरसात में अेरावत इंदर।
चाय मचाई चौगुणी, पर ताल पुरंदर॥
गरजै अंबर बद्दरा केहर गिर किंदर।
तो मधु धारा अनधन मच्यौ धर जांण समंदर॥5॥


2 निसांणी

पुरटज थाळ बजाय के पुन चौक पुराई।
गीत झकोळे गोरियां, खबरां दिर आई॥

वडनाळां गिड़की विहद, सुरलोक सुणाई।
इळ अंबर हिक सोर कर घन घोर मचाई॥

ढोल नगारां ढोलियां, सहनाय बजाई।
तिण पुळ आया तायफां, सुभराज कराई॥

आफू गळवाया उठै पुन आसव पाईं।
कवलोकां अवरी किया थिर किरत थाई॥

गुळ बंटायौ नगर में, जस बातन जाई।
महपत देखे मांगणा द्रव्य छौळ दिराई॥

राजा मन राजी हुवौ सब जन हरखाई।
तो ऊछब कीनौं इळपती, देख्यां बण आई॥




स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1995 ,
  • सिरजक : ठाकुर प्रेमसिंह ऊदावत ,
  • संपादक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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