कागदां माथै बिछाऊं सबद
आखर-आखर जोड़'र
बसाऊं नितूगै
एक नूवी दुनिया
जकी होवै म्हारी,
फगत म्हारी।
घड़तौ रैवूं
नित रौ कीं न कीं...
ईश्वर!
म्हैं ई सीखग्यो थारी भांत
सिरजण रो सुख लेवणो
पण नीं सीखूंला म्हैं
थारै ज्यूं
आपरै ई बसायोड़ी दुनिया नै
मन आवै जद ई
मिटा देणो।