म्हैं म्हारै मन आंगणै

पाळी ही प्रीत

थारै सारू!

हेत रा

हरा-भरा कीं सबद

सूंप्या हा थनै

पण ठाह नीं

तूं कांई करियो

उण सबदां रो!

म्हैं उडीकतो रेयग्यो पण

उण सबदां रै पुळ चढ'र

नीं पूग्यो म्हारै तांई

थारो प्रेम।

स्रोत
  • सिरजक : संजय आचार्य 'वरुण' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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