बाबै रो आदेस हो—

बारहवीं पछै आगै पढणै सारू

स्हैर रै किण कॉलेज मांय नीं घालस्यूं बेटी नै।

आंख्यां पौंछती मां री अरज ही

म्हूं आखी उमर थारी मानती रैयी हूं

इबकाळै

फगत इबकाळै म्हारी मान लैवो।

म्हारो हौसलो हो

गोबर, बुहारी, चूल्हा-चौकिया, सोसण-बेगार री

सींव तोड़स्यूं।

हमै गांव री गुवाही है—

सुरजै चमार री छोरी

डागदर बणनै कर दी

सगळै भोमियां री जुबान री नसबन्दी।

स्रोत
  • सिरजक : बी एल पारस ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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