पंछी नैं

उडतां देख

नान्हों टाबर

सोच्यो...

म्हैं उडूं

आभै मांय!

मछली नैं

तिरतां देख

नान्हों टाबर

सोच्यो....

म्हैं तिरु

पाणी मांय!

सुसियै नैं

छलांगां भरतां देख

नान्हों टाबर

सोच्यो...

म्हैं भाजूं

थळ मांय!

अर

-उडग्यो!

-तिरग्यो!

-भाजग्यो!

नान्हों टाबर

कलपना री

पांख लगाय

पळ मांय..!

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै