कदी पटड़ै बगतां

सावळ सुणजो

गूंगी कोनी नहर

सुर सार जाणै।

गावै गीत

मनभावणां

भोरांनभोर परभाती

सिंझ्या आरती

रात नै हरजस

आपां भलांई भूलग्या

पण नहर रै काळजै तो

अजै गूंजै

आदिम लय-राग।

चिड़ी-कमेड़ी

सांभै साज

डेडर-मछलियां

निभावै

टेरिया रो फरज।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली Rajasthali ,
  • सिरजक : मदन गोपाल लढ़ा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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