कदै नांव रै पांण

कदै तिर-तिराय

कीवी नदी नै पार

कितरी-कितरी दांण।

नदी ही बिचाळै

जिण सूं पड़पणौ हौ

जावण नै उण तीर।

ओह!

कितरी मोवणी अबखाई थूं

अे नदी!

उण तीर जावणौ

तौ फकत अेक औळावौ!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कैलाश कबीर ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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