म्हारे गांम मअें

कंय भी नदी

न्हें वेहती

म्हारे गांम ने

आहे-पाहे

कंय समंदर भी न्हैं

हांचू कऊं

न्हें तौ म्हैं

वेहती नदी देखी

के न्हें हुकाती थकी

अर

न्हें’स् देख्यू

उगलातू थकू समंदर

क्यारे भी

फेर भी म्हूं जाणूं हूं

नदी नै समंदर ने

घणू-घणू

कैम के

म्हैं

देख्यं हैं

नदी नै समंदर ने

वेहतं

हुंकातं

उगलातं थकं

आखी उमर

म्हारी मां नी आंखं मअें

हाचू कऊं हूं

म्हूं जाणूं हूं

नदी नै समंदर

आखर कैने कअें हैं।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : प्रदीप भट्ट ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन