मन रै पांख्या लागी

हियै ऊंडी आसा जागी

न्हासतां-न्हासतां

म्हैं कठै-कठै नीं पूग्यो...

भळै सामी ऊभो हो

भर्यो समंदर धूड़ सूं

धोरै माथै

भरमावतो भरम!

आस अमर धन म्हारो

भटकू इण रिंधरोही

मालक ! मरणो है मंजूर

पण तिरसायो मत मार!

स्रोत
  • पोथी : पाछो कुण आसी ,
  • सिरजक : डॉ.नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : सर्जना प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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