बोल विहूणै ताल री

उर ईथर थिरकण में।

थिरक थिरक नै थड़ी करती

अनोखै हाथां सू अनोखी

सिरजणा कै—

सूरज ने चंदै रा, दो

कटि छिबता छवोलियां सू

ध्वनि रा फूल उछाळती

पुररवा रै अंतैपुर में

ऊतरै है

अत आतुर-उर उरवसी

सुरंगण!

आरजदळ सांवठी सेन री

अडोमड़ ऊपड़ती अस टापां

इण धर संस्कृति स्रोण में

साखीजै है

जीवण री जोमीली गत

गरजणा

कै

नटराजी-निरत उमंग अगै

विन नतैक नतैण ज्यू

लाखू लास्य जगावती

उद्वैलीजै है

अरथहीण कळा में चिरंतण अरथ री

उद्वैलणा।

स्रोत
  • पोथी : मिनख नै समझावणौ दोरौ है ,
  • सिरजक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन