लारलै दिनां सामला घर रै बारै

उभै रुंख री हत्या वैती देखी मैं

जको रुंख पंछी पखेरूआं री शरणगाह हो,

गाईयां ने भरपूर छियां देतो हो

उण रुंख री मौत वैती देखी मैं

मालिक री मौत पछै

घर री देखभाळ करणियां कारिन्दा

एक दिन उण हर्‌या-भर्‌या शीशम ने वाढ दीन्हो

वो विशाल छायादार शीशम

वांरै रै जीव रै जंजाळ हो

रूंख रा डाळ कदैई सियाळे रा तावड़ा नै रोकता

कदैई रुंख री जणां टांका तांई

पूग जाती

एक दिन सुबै-सुबै

पीळै परभात पांच जणां आपरी आरियां कवाड़ियां लै'र हाजिर व्हिया

जोर-जोर ऊं आपसरी में बतळावण लागा

वै आप आपरी बुद्धी रै मुजब रुंख नै बाढण री साजिश रची...

रुंख रै कानां तांई वात पड़ी

पण निरबळ री आस निरास में बदळ गी

एक-एक डाळ नै निरमोही आरी ऊँ छील दीन्ही

रुंख रै डील रा घाव रिसण लाग्या पण देखणयौ'र कुण विपदा

सुणणियो

चोट माथै चोट

घाव माथै घाव

डाळां कट कट'र जमीं माथै पड़्या

रुंख तोई उभौ रह्यौ

अडिग अणमणों अबोलो

अंत में जद धड़ री वारी आई

रुंख री आत्मा चीत्कारी..

झर-झर आंसूड़ा बैवण लाग्या

लोयांझाळ व्हियौड़ो रुंख

विचार कियौ

घणों दौरो है समूळ उखड़ जावणौ

जड़ां समेत बीत जाणों

कुण जाणी ही एड़ी मौत..

रुंख नै मिनख री दियोड़ी निर्मम मौत

सूकणै पड़्यौ...

आपो नाख्योड़ौ रुंख

आदमी नै सब कुछ

सूंप आदमी रे हाथां

ठगीज्योड़ो

जमी माथे ढेर हुयोड़ो पड़्यो हो।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : प्रमिला चारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै