सौ बकरां रा रगत सूं फळे

अेक अंगूर-बेल

केई जूनी कैवत औगाळतां औगाळतां

केई सुहाग रातां रा मसोसिया गीत

अेकण सागै आज इज

थारी कबर सूं बरकता बारै आया,

जोबनिये री जूनी मजबूरी मोरिया

जिसमी-फूल

इतिहास री बिलखती बावळ बिगताया।

उरण रूप रूधणी

मुगल मनसब री मुकळाई रौ काट

सेवट वां सांकळां नै खायगौ,

हजार बरसां रै इतियास रौ

मेछ मांगीगर वीर हजारौ

हमें घणी फुरसत में

नीची नाड़ कियां

इण धौळियै भाटां बैठी

धौळी धट रातां में रमी रमै।

उण अतीत रौ इतरौ निसरडौ धीजौ

अठै आतां

इतरै मरियोड़ै पाणी री गुमटाई गूंग नै

इण ढालै

मकरांणी पैठ सूं परोटै॥

स्रोत
  • पोथी : अपरंच पत्रिका ,
  • सिरजक : नारायणसिंह भाटी ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा
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