मंत्री

कदी होवै छा...

दुख का साथी,

बपत का सगा।

पण, अब तो,

आपा-धापी माँचगी सारी जगाँ।

अब आँबा पै धसूळ

अ'र आँकड़ा पै नींबू लागै छै।

मिंतर को दुख देख'र मिंतर

दूरो भागै छै॥

अब मंत्री वाँने कखै छै,

ज्यां को 'मन'

लोभ का समंदर मै 'तरी' की नाईं

उछाळा लेबो करे...

मूंडा पैं' मुखौटो धा'र

दुनिया नै छळबो करै॥

स्रोत
  • पोथी : थापा थूर ,
  • सिरजक : गौरीशंकर 'कमलेश' ,
  • प्रकाशक : ज्ञान-भारती प्रकाशन, कोटा
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