अलेखूं आदमखोर

गांवां रै दोळा घूमता रैया।

म्हैं गांव अर इस्कूल बिच्चै

सोधतो रैयौ

बापू रै चैरै रौ चिलकौ

आथमतै सूरज में

कोई बदळाव रौ सैनांण

धोरै री पाळ माथै बैठ

अणमिख देखतौ रैयौ

गांव रै हीयै सूं उठतौ

धूंऔ

बधतौ अंधारौ च्यारूंमेर

पळ-पळ

सरणाटौ सालरतौ रैयौ।

उदास

थाक्योड़ै बिरछां री

डाळ्यां पर केई साल—

अंधारौ काढतौ रैयौ कटका

अर हवा में आपूं-आप

उथळीजता रैया पानां

उण जुलम रै इतिहास रा।

हाल इण जुलम नै

केई फाळ औरूं तै करणा है—

कोसां लग जावणौ है

इण जंग रा जूंझारां नै

अलेखूं नूंवां गेलां

अर बियाबानां रै पार पूगणौ है,

हाल बहियां में

अलेखूं लीकां फिरणी बाकी है

बाकी है बाबै में पीढियां रौ सूद

अडांणै पड़्या खेत

करजै री कोठड़ियां सूं काढणा है

पोतां-पड़पोतां नै—

मुकदमा चाल रैया है—

पड़तालां जारी है!

वौ बगत है

माकूल

म्हैं वां रै साथै

कांधै-सूं-कांधौ जोड़

कीं करणौ चावूं—

उघाड़णी चावूं

उण अफरा-तफरी नै

उजास में

खुल्ली हवा में लावणा चावूं

तमाम सूखा उणियारा

अंग्रेजणौ चावूं

वौ दरद

जिकौ (कै)

म्हारी कविता रौ

काळजौ है!

स्रोत
  • पोथी : अंधार-पख ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : जनभासा प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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