सगळा संजोगा-दुजोगां नै

पार कर’र जद

जिनगाणी रै इण रस्तै

नीसरै है

ठा कोनी क्यूं

टाबरपणौ पाछौ अंखुआवै?

पाछौ ठुमकण लाग्यौ है!

बावळी-भोळी वै जिदां

जिण पर थूं बलिहारी जावती

म्हारी डग-डग हंसी सूं थूं

जीव जावती

रोवणा उणियारा सूं

काळजौ बैठावती

आज कठै है थूं?

हमेस हुआ करती रैयी

म्हारी कामयाबी री

पण म्हैं गिगार नहीं करी

कदी

जद थूं घणी आस सूं

म्हारै सामी जोयौ

म्है लाइनीन रै ओटां में लूकियौ

जाण’र अणजाण बणतौ रैयौ

जाणै कोनी हौ

की रीं तलास में हौ

पण थूं सदा

आसीसती रैयी

आज म्हैं

थनै सांप्रत देखणौ चावूं

तौ थूं कठै है?

थारै खातर

थारी आस रौ कुछ कर’र

म्हारै अणेचा नै मेटणी चावूं

तौ थूं क्यूं नीं दीसै

अे मां! थूं कठै है?

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : किरण राजपुरोहित ‘नितिला’ ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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