मां रै पल्लै बंध्या
इण मेळावा खातर
लगोलग लागती
गांठ रै आगै लारै गांठ सूं
अेक गांठ बण'नै रैयगी
म्हारी मां री
ओढणी।
मां! थूं ई तौ कदै'ई छोरी ही
इण गांठां बिचाळे
क्यूं बिसास्यौ
थूं थारौ आपौ?
म्हनैं दीसण लागै
वौ रूंख
जिण रा डाळा
फकत मन्नतां वाळी
डोरी बणनै रैय जावै
मां! थूं ई इण मेळावा खातर
अेक गांठ बणनै रैयगी छै।
मां! म्हैं आई छूं
म्हारै सासरियै सूं आज
जोवण वा गांठ
जकी थारै सारू
बांधी छै कोई
इण मेळावा मांय,
पण
नी लाधै…
म्हनै ठा छै कै नी लाधैला,
मां! म्है नीं भूली
उण गांठां रौ चुभणौ
कितरी चुभती ही
जद रमती
म्हैं थारै खोळै मांय
आज तांई रड़कै
सूळ दाई
थारी वै सगळी गांठां।
मां! आज बांधण दै म्हनैं
थारै खातर
म्हारै पल्लै अेक गांठ
क्यूं थूं तजै म्हारी बात
तजै म्हनैं
फेरूं इक वार
पण बताय दूं थनैं कै
म्हारौ हियौ
इब हियौ नी छै
छै वौ
थारी इमरत गांठ
मां म्हारी!