गुवाड़ बिचाळै

बाळपणै में

लगायो नीम

म्हारा बापू

अब

हुयग्यो मोटो

घालतो घेर घुमेर

जिणारी डाळ्यां

बांध पालणो

हिंडावती

गावती

म्हारी मा

म्हारै हंसता

मुळकतो नीम

जिण री छियां

ढाळ माचो

मैटता थाकेलो

म्हारा बापू

तो सुसता

लेवती मा

नीम...

आज निरच्यू खाली

गुवाड़ बिचाळै

दिन-दिन सूख'र

बणग्यो ठूंड

ढळकावै आंसू

पण पूछै कुण

म्हारा बापू

रुजगार रै मिस

आयग्या स्हैर

पण नीम कठै जावै

सीर जिको है

इण माटी सूं।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : ओम अंकुर ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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