थां, जे दाता छो मनखजूण का,
चितेरा छो, म्हारा करम की रेख का,
म्हारी सांसां की सौरम का, संस्कार भी छो थां,
ओ। म्हारी आंख्या में बस्या, गंधोदक जश्या पुन्न
ई संगली दुनिया का, अद्भुत दरसन के लेखे,
म्हारा खून की बूंद-बूंद पिघले छै,
थांका ही हेत की गरमाहट सूं।
गरीबी सूं लड़तो-थको,
दरद को पहाड़ सीना पे उठायां,
थाने पाल्यो म्हई।
ब्हवा दयो डील को सगलो कुंदन,
पसीनो कर-कर, के
के कोय दन तो नपजेगी धरती सुखां को बिरवो।
जीं पे लागेगो अमरफल म्हारे बेई।
म्हई अमरफल खिलाबा ओई,
थे मुलकता रहया पी-पी'र आंसू
थांने पील्यो दुनिया को कसेलापण,
म्हई मीठी लोरी सुणाबा बेई।
आंख्या पै पथराई होवै उड़ीक
अर सोबा को दिखाबो करै कोई
तो कस्यो लागेगो ऊ
जाणूं छूं म्हूं।
म्हनै देख्यो छै बालपणा में,
सूतीं मां की आंख्या में उगयायो गीलोपन,
अर सो चुकया पिता की
रहै-रहै अर भिंचती मुठियां।
म्हूं जाणूं छूं ईं बात नै,
के किराया का मकान बदलतां-बदलतां
कतना बदलग्या छां म्हां सब भी।
घूमतो ग्यो काल को पहियो अश्यां ही हौले-हौले,
अर एक दन म्हूं फेर पूगग्यो ऊं देहलीज पे,
जी पे थांने म्हाई पायो छो,
मनखजूण को अमरत प्वायो छो।
पण दुख छै म्हई,
के ई बगत में कोय बात न्हं छे पहली सी,
म्हं पै मांडया ग्या, जे जे सपना,
म्हूं वां का चतराम पे रंग भी न्हं भर सकयो।
बड़ो होयो,
तो बड़ा होग्या म्हारा सपना,
अर वां सूं भी बड़ी होगी म्हारी कुण्ठा
म्हूं डरपै छो,
दुनिया को सामनो करबा सूं,
ई लेखे डरपबा लाग ग्यो, आपणा सुखां सूं भी,
ताती-ताती सलाख डील पै झेलअर
म्हूं आता गरियाला में,
अर अचाणचक, थां पै ही उडेल देता सारो कसैलोपण।
थां तो आदी छो,
तस अर कसेलापण का,
प्हैली झेले छा म्हारा सुख की आस में,
फेर म्हारा दुख सूं डरपअर, झेलबा लाग्या बै ही बातां।
थां महादेव की नाई
पीबा करया सारो ज्हैर,
अर हर घूंट की लेअर
सलवटां बदती गी, चेहरा पै झुर्रियां की।
म्हं सोचूं छूं,
म्हारी सांसां में सौरम,
आंख्या में सपना,
अर हिवड़ा में अमरत बण्या रहैबा की आस में
जतनो ज्हैर प्यो छे थां नै,
ऊ सगलो ही, बह जातो जे जमीन पे पड़ अर,
तो दुनिया जीवती भी बचती के न्हं।
थां,
म्हारा ही न्हं
ई दुनिया का भी जनमदाता हो, मां-बाप का रुप में।
सिरजन की चेतना का सबसू बड़ा पालणहार।
म्हूं ही नह,
ये नद्दी, आकाश, सूरज, चन्दरमा,
सौरम, बायरो, कविता अर गीत
सब का सब आभारी छे थांका,
म्हारी श्रद्धा की लेर,
यां सबको भी प्रणाम स्वीकारो जनमदाता।