म्हारी गाय

मैं जाणूं हूं थारी आंख्यां री झुरणा

पीलरीज्योड़ै डील नै ओलांग’र

आंवतै सांस रा तिणकला

खुंटां रै नीं खुभै

जाणूं हूं

तूं नीं जाणै

कै खूंटां में रगत नीं बेवै

बिरथा है थारो

नैण भर-भर नै घूजणो

उबासी नै उगाळी री बांस

उठै नीं पूग सकै

जठै-लग चावै तूं

कठै'ई औगाळ नीं हुय सकै

कै केयी छिण तूं थारा समझै

खुंटै सूं लैय’र

खेळयां तांई री आजादी

थारै ढ्यांकणै रो मोल है

धणी रो आंधो हेंसाब

तूं नीं जाणै म्हारी जामण

अे भरमावण रा थोथा गाळा (धोरा)

किण रो पख नीं पाळै

तूं भूखो है—हां ठीक है

पण सुतंतरता में

भूख री गिनरथ कठै?

तूं तो चाट धणी री

जाडी हथाळी

हथाळी रे लाग्योड़ो लूंण

खाली चरकास नीं है

लूंण हरामी रो बंधण है भोळी गाय

न्याणें री अबखाई नै भी

तूं पंपोळ में भूल जावै

अर पछैं जे चेतै तो कांईं

न्याणै री डोर घणी पक्की हुवै

थारी फुरणा री मार सूं

कदै कदास रो उमटियो छोह

तूं थारै मातपणै रै अहसास सागै

बिसरा देवै

पण मां—चेत तो खरी

थारै रगत नै जमाय लोग

चांदी बणावै

अर अेक तूं है

खाली निसखारां रै पांण जीवै

कांईं तनै बांस नीं आवै

थारी खुद री पुराणी

हुयगी ऊगाळी री

तो अबै

चेत मावड़ी

चेत गावड़ी।

स्रोत
  • पोथी : सवाल ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ जयपुर खातर ,
  • संस्करण : 1
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