मूंघी मेड़ी-म्हैल चिणावै,कूड़ कपट सूं आंधा लोग!

धन-जोबन रो गरब दिखावै,भरमा में भरमाया लोग!

नशो करै नित-बहक्या डोलै,बीच-बजारां भूंडा लोग!

लूटखसौट मचावै निसदिन,लड़-लड़ मरै लुटैरा लोग!

खुद’ई खुद नै धोखा देवै,पांखडी-छळगारा लोग!

आंख्यां आगै रचा अंधेरो, हियै-तणा आंधळिया-लोग!

मिनख जमारो खोयां जावै,भूंडा अर बेडोळा लोग!

जूण-जुद्ध घमसाण मचावै,रळमिल नाचै नागा लोग!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : अनिता सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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