ओपरी बीजळी झबकारा नाखै!

रळकती

मुळकती

पळकारा नाखै

म्हारै च्यारूंमेर!

मन रै आभै

आसंका रा मेघ

उमटीज-घुमटीज उठै

घटाटोप भाव-सुभाव!

मांय-ई-माँय

गरजणा-तणा घणघोर नगारा बाज उठै!

बीजळी, जद ऊँची चढ़-चढ़नैं कड़कै

जणा बात इतरीसीक मन मांय रड़कै।

आज नी तो तड़कै

बीजळी पड़सी तो जरूर

पण कठैई दूर!

म्हारै मांय ऊमट्योड़ा मेघ छँट जावै

थोड़ो घणो ध्यान बंट जावै!

अर न्हायी-घोयी / अणूती / उदास

साँयत सावळ जम नी पावै

कदाँस,

फेरूं कोई ओपरी बीजळी

झबकारा नाखती

आखती-पाखती

चढ़ती आंवै सैंजोर

मैं सैंधमैंध काढूं

जितरैक तो

के ठा’! कठै पूग जावै!

नित इयाँ

अेक नुवों-दिन ऊग आवै!

स्रोत
  • पोथी : कूख-पड़यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन
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