जेठ री धू धू करती
लू मांय तपै
चोटी सूँ एडी तांई पाणी झरै
जाणै स्वांत बूदों झरै।
घणेरा फागण आया अर गिया
पण
घूघरों री घमरोळ
अर चंग री थाप रे साथै
थिरकरणों कद भूल्यो?
सिंझ्या वेतों घरै पूगै
देखै
पाणी पी भूख बुझावती मूमल
कुरळाट करता टाबर
उण काळ जा री कोराँ नै
हियै लगाय
सन्तोख री गुटकी दै।
अस्यो सन्तोख अर सबर
तीनूं लोकां मांय
दीसै ?
जाणै उण रा खेतां मांय
सन्तोख ई नीपजै
क्रान्ति री ठौड़
गाँधी रा आखर ऊगै !
खेती सूखै
लिछमी रूठै
घर बार ढसै
पण ओ लाडलो
साबरमती रा सन्त रा
'राम-राज' रा गीत गावै !
वो
कुण रै आगे हड़ताल करै?
कुण रै भागे मांग करै?
कुण रै मागे परदरसरण करै?
इण सवालों रो मियानो
कुण देवै?