ओ बल्ब!
घणो बळ्यो,
घणो चाल्यो...
इण माथै
समै री गरद जमगी
इणरी रोसनी कम हुयगी
इणरो तार-तार हिलग्यो
झप-झप करण लागग्यो!
ओ नीं जाणै कै-
चाणचक फ्यूज हुय जावै
किणनै पतो है
हर बल्ब री
आ ई प्रकृति है
आ ई नियति है।