बल्ब!

घणो बळ्यो,

घणो चाल्यो...

इण माथै

समै री गरद जमगी

इणरी रोसनी कम हुयगी

इणरो तार-तार हिलग्यो

झप-झप करण लागग्यो!

नीं जाणै कै-

चाणचक फ्यूज हुय जावै

किणनै पतो है

हर बल्ब री

प्रकृति है

हर बल्ब री

नियति है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी समिति
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