मिनख मोकळो सगतीमान,
हुवै कदै जद बो लाचार।
तद मिनखां नै तारण सारू,
म्हैं जग मं लेवूं औतार॥
पण माणस ई करणी सारू,
मन मं क्यूं नीं करै बिच्यार?
पुरसारथ सारू ई आयो,
कांई कर्यो बो जग मं आ'र?
पुरसारथ माथै सूं माणस,
खो दियो खुद रो विस्वास।
साधन हू'ता नंई आस्था,
मिनखपणै रौ हुवै विनास॥