म्हूं तो कुछ नी बोलूं

म्हूं तो चुप हूं साहब,

बाहर सूं दीखूं—

भीतर सूं घुप हूं साहब।

दड़ बोच्यां बैठ्यो हूं

डरतो तलवारां सूं।

मीठो खरबूजो हूं

कट जासूं धारां सूं।

थे बलती तीली माचस री

म्हूं तूड़ी रो कुप हूं साहब।

थे म्हारी किस्मत रा मालक

थे कहद्यी सो ठीक।

हुकम-हजूरी गोल-चाकरी

म्हां हाथा री लीक।

चौकस-चतुर फील्डर थे, अर

म्हूं सीधो सो चुप हूं साहब।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अक्टूबर 1981 ,
  • सिरजक : अखिलेश्वर ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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