बस यूं ही आळस नें ओढ़
ओवरी में गुजार दी जिन्दगी
न्ह बण्यो कणी सूं अपणापो
न्ह कणी री आंख को तारो!
लोगां री निजरां में
बण्यो बापड़ो बिचारो।
प्यार, दुलार, सदाचार
सबको माँझी भ्रष्टाचार।
न्ह बण सक्यो म्हारो साथी
ई दुनिया ऊंची उठातो
राजसी व्योपार!
प्यार कर् यो गृहस्थी रै भांत
नौकरी भी... निष्ठा रे साथ!
जलूस काढ्या
हड़तालां करी
भींतां पे नारा लिख्या
दनं ने दनं
रात ने रात कह्यो
पण सब बेकार
क्यूं के न्ह बण पायो
म्हूं आज को सफल
बाजीगर
न्ह चाल पायो समै रे साथ
बस सहतो रह् यो
आपणारी घात
झूँझ हार थाकी जिन्दगाणी ले
बन्द हूँ आपणी कोठड़ी में
निराश बेजार
म्हूं आम आदमी