चारण रो चारण

मती बण म्हांरा लिखारा,

इण सूं तू थांरी ओळखाण

धूड़ में मिल जावैली।

आपरी निजू पिछाण

कोयलै सूं मांडयोड़ै

भीतां माथै आखरां ज्यूं

चिन्नी सीक छड़कां सूं

मिट जावैली।

थारै हियै मांय

खार खायोड़ौ मिनख

मुड़दो होय जावैला,

तू तू नीं रै परौ

अेक भाटो होय जावैलो।

सुण

तू थारै मांयलै मिनख नैं

टंटोळ, सागीड़ौ पंपोळ।

स्यात बो फेरूं जागै अर

थांरौ बळतो मिनख औरूं बळै।

तूं खरो-खरो लिखै

सांची-सांची कैवै,

लिखारा!

म्हैं तन्नै सांची कैवूं

चारण रो चारण मती बण।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति)
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