म्हैं बार-बार

थांकी बात अर उछाळा'पै

ताळी देवतो रेवूं!

म्हैं बार-बार

आभौ जीवता थकां

उणनैं ध्यावतो रेवूं!

म्हैं बार-बार

जीवतो थकां अपघात कर लेवूं

तौ'ई म्हारी सूरत'पै

किणी नैं तरस नीं आवै!

फगत दया रो

आसरो मिलै...

ईण आस में

हेरतो रेवूं

देवता, द्याड़ी अर देवरा।

अड़ौअड़ गेलै चाल तां

मिल जावूला थानै

हर ठौड़, हर जातरा में...

अेक सूरत है म्हारी

जिणनै ओळख लो है

किणी अेक मिनख सूं...

म्हूं मिलूलां थानै...

बार-बार

हजार बार।

स्रोत
  • पोथी : चौथो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : मोहन पुरी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै