मत करो रे भाई

मत करो बन्द

बारी अर बारणा!

के फेरूं कदैई

आई'ज नीं सकै

साथी-साइना

हरता-फरता

बंतळ करता...

मत नांखौ औसर सूंघती

कीड़्यां नैं कीड़ीनगरौ

भरमायां सूं भांग जावै

कित्तौ मोटौ व्हो मंगरौ

मत करो सगळा

कात्या-कुत्या नैं कपास

कै रूई री

व्हिया करै आत्मा

अर बंची रेवै आस!

मत फैंको तळाव रै

थिर पाणी में भाटा

कोड़ी रै भाव

नीं पूछै माछळियां

भाटा री मार

भावै जित्ती करलौ बौछार!

मत करो घिरणा

बावळ रै कांटा सूं

कांटा सूं इज निकळै

पग में भांग्यौ कांटौ...

मत करो विस्वास

चिकटी-चौपड़ी बातां पै,

चिकटाई रौ रैवास

नकटाई सूं अेक आंगळ रै आंतरै...

चिकटाया हाथ

साबू सूं धोयां नीं सरै!

रैय-रैय नै कानां में

कबीर री साखी रा

बोल, टपक-टपक झरै

'मत कर भोळी आतमा

थूं नुगरा रौ साथ रैऽऽऽ।'

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : कुन्दन माली ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी