थारै नेह पांण

बसै संसार

म्हैं जांणूं...

जांणूं कै

जिकै दिन

टूट जासी थारौ नेह!

खूट जासी संसार

म्हारै सारू!!

स्रोत
  • सिरजक : दुलाराम सहारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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