म्हैं अेकली दो जणां आळा घर मांय
अेकदम अेकली!
म्हारी कोनी चालै,
कांई कर्यां म्हारी चालै?
म्हारै सागै दोय-च्यार हुवती तो
स्यात मायड़ सुण लेवती!
कांई मायड़ सूं मांगण अर
उणनै सुणावण सारू
धरणौ दै'णौ पड़े?
हड़ताळ 'कै भूख हड़ताळ करणी पडै?
आ सूरत कांई कर्यां बदल सकै?
जद कदैई कोई उपाव सोचूं
बड़ला री जिंया लाकड़ हुई मायड़
म्हारी कोनी सुणै।
आ दसा कांई म्हारी इज है?
म्हांरा जैड़ी और ई तो धीवड़ियां
गांव अर गांव रै गोरमां मांय हुवैली।
पण, मायड़ केह्वै 'कै थारै जळम रै रातै ई
थारा जैड़ी बात करण आळी
कोई जळमी हुवैला!
थारी बातां आळी नीं तो कोई देखी
अर नीं ई सुणवा में आई —
जै मायड़ सूं जीभ लड़ावै।
चपर-चपर करी तो चींप्यौ
बळबळतौ कर'र जीभ पै चैंठाय देवूंली।
मायड़ अेड़ौ कर सकै!
ढांभ सकै म्हारी कंवळी जीभ!
क्यूं नीं कर सकै है।
म्हनै याद आवै जद पिकनिक
जावा री जिद करण पै
सांझ ताईं ओवरा मांय बंद कर दीधी।
इस्कूल रै जळसा में
रात रा नाच-गाण मांय भाग लेवण सूं
ना कर दी अर पगै सींदरौ पळेट द्यौ हो।
मनावण सारू मैडम आई तो
घर रै ताळौ देय'र पाड़ौस में जाय बैठी।
मायड़ डरपावै, बापजी बरजै
पण, धनिया रा बापजी उणनै
साइकल माथै बिठाय'र देखावा लेय गिया
इस्कूल रौ जळसौ
पूरी तीन —च्यार रातां ताईं।
कांई रातै निकळणौ
एक धीवड़ी सारू जुलम हुवै?
मायड़ ओ इज बतळावै 'कै
सूरज मंद अर धीवड्यां घर मांय बंद!
उजाळा में इज दुनिया है
दिन आंथ्या च्यारूंकानी अंधेरौ।
म्हनै तो अंधेरौ ई अंधेरौ लागै है दिनूगै ई
कुण जाणै म्हारी पोळ साम्ही
सात घोड़ा आळौ उजास लियां
सूरज कद उगसी...।