म्हैं हूं थारी चंद्रगौरजा
छैल भंवर थे म्हारा हो
म्हैं हूं थारी मूमल प्यारी
थे अमरकोट रा राणा हो,
मोत्यां स्यूं मुंहगा हो थे
म्हारै काळजियै री कौर हो
म्हैं हूं थारी चंद्र पिया जी
थे म्हारा चकोर हो।
म्हैं इतरो सिंणगार करूं हूं
पिवजी थानै रिझावण नै
कद आवोला थे ढोला
मरवण री प्यास बुझावण नै,
अब आग प्रीत री लागी है
बातां स्यूं कियां बुझाओला
थानै सौगंध है इण गौरी री
थे आय’र हिवङै लगाओला,
सुनी सेजां पर काजळियो
आख्यां स्यूं ढुळ-ढुळ जावै है
काळी-काळी रातां में जीवड़ो
पिवजी पिवजी गावै है।
कद आवोला बालम थे
नैणां रो नीर मिटावण नै
थांरी आ गणगौर बावळी
बिलख-बिलख मरज्यावैली,
कंचन री काया कामणगारी री
काळी-पीळी पड़ ज्यावैली,
प्राण पंखेरू उङ ज्यावैला तो
मारूड़ी रै मर ज्याणै रो
सांची प्रीत ना निभा पाणै रो
कळंक थारै माथै आवैलो,
जे अब भी थे नीं आया तो
म्हैं भेज देऊंला सैनाणी,
ज्यूं रतन कनै शीश काट कर
भेज दियो हो क्षत्राणी।
गौरी री अै बातां सुण-सुण
छैल अचम्भो पायो है
प्रेम गौरी रो छैल भंवर नै
सांझ ढळ्यां घर ल्यायो है॥