ईक सूरज पूरब मा उग्यो

ईक उग्यो मेवाड़ में,

नाम आपणो रोशण कर ग्यो

आखा ही जहाण में

बाळपणा रा खेळकणा में

ढाल, भाल, तळवारा सूं

खेल खेल में सिखण लाग्या

रण रा कौसल यारा सूं

धीर धरण मन माँही हरदम

राख्यो जग रे सामणे

नाम आपणो रोशण कर ग्यो

आखा ही जहाण में

मगरा, मगरा वन वन भटक्या

राज रो धरम निभावण ने

मुगळा री सेना ऊँ भीड़ ग्या

छापा मार कर मारण ने

जीत मिळी जो रण में

राष्ट्र रो धरम निभावंण ने

नाम आपणो रोशण कर ग्यो

आखा ही जहाण में

घास फुस री रोटी जिम्या

मान में स्वाभिमान रे

भीला रा सरदार वणी ने

न्योछावर व्या प्यार में

आँच जरा नी आवा दीदी

राज वंश री शाण में

नाम आपणो रोशण कर ग्यो

आखा ही जहाण में

हळदी गाटी याद करेला

थारा ईण बलिदाण ने

कण कण माँटी मा गूँजेळा

वीर प्रताप जबाण पे

थारा जीत रो डंकौ

वाजे हिन्दूस्ताण में

नाम आपणो रौशण कर ग्यो

आखा ही जहाण में।

स्रोत
  • सिरजक : प्रियंका भट्ट ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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