सुरपत केम बिसारियो, मरुधर हंदो मोह।

मारण सूं अबखो मरू, बरखा तणो बिछोह॥

बरखा बिछोही शुष्क रोही, और वोही इण समैं।

मघवा निमोही बण बटोही, हीय मोही लख हमैं।

बलमा बिसारी धण दुखारी, जीव भारी कष्टकर।

पत राख सुरपत दर बिसर मत, मेट आरत मेह कर।

जिय देर मत कर मेह कर...

कैक काट्या देख दिनड़ा, एक इण हिज आस में।

निरस तन नैं हरस मिलसी, सरस सावण मास में।

पिय दरस दे बण बरस बादळ, परस पावन देह कर।

पत राख सुरपत दर बिसर मत, मेट आरत मेह कर।

जिय देर मत कर मेह कर...

आरत सांभळ कंत कांठळ, बण सकळ इळ पर उमड़।

गरड़ाट कर धर गाज गहरो, घरर घर घररर घुमड़।

सुरराज मिलियां जीव सोरो, निरख अवनी नेह कर।

पत राख सुरपत दर बिसर मत, मेट आरत मेह कर॥

जिय देर मत कर मेह कर..

'गजराज' सावण मन्न भावण, आज खावण रह्यो।

वणराय सूखी गाय भूखी, लाल लूखी खा रह्यो।

अब छोड़ ऐंठण हे सजन घण, दरद मेटण देह धर।

पत राख सुरपत दर बिसर मत, मेंट आरत मेह कर।

जिय देर मत कर मेह कर.....

स्रोत
  • सिरजक : गजादान चारण 'शक्तिसुत' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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