तू याद कर

रोई रै राह में

घणांई ऊंटगाडा चालता

भात्तो ले जांवती तू

म्हारै ऊंटगाडै नै

देख'र थम जांवती

गाडै पर बैठ्यां-बैठ्यां

आपणो प्रेम कित्तो बध्यो

आपणै प्रेम री साख भरतो ऊंट

छिन चढाय’र कितो भाजतो

बस नै नहीं जावण देंवतो

आप सूं आगै!

तू याद कर

घरै आंवतै बगत

हरै री पांड लियां तू

कित्ती करती म्हारी उडीक

बाकी तो

आप-आप री पांड लेय’र

उठ जांवती आप-आप रै घरै

आज भी बो

रोई आळो राह है।

वो ऊंटगाडो है

पण बगत रै साथै

स्सो कीं बदळग्यो

म्हूं ऊंटगाडो लिये आऊं

म्हानै आज भी दिखै

हात रा झाला देंवती तू

आज मोड़ो कर दियो

मा रोळा करसी

इत्तो कै’र गाडै पर बैठगी तू

अ’र रोजीना री भांत म्हारै

'चल मुन्डेया' कैंवतै

ऊंट चाल पड्यो

दड़ाक छंट!

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हरीश हैरी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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