मेह अंधारी रात
आभौ काटकै
किड़किड़ियां बांटै
आकड़ां रा पान खड़कै—
खेजड़ै री थोथ में बैठै
बगत री फुरणी बाजै
रूंखां रा थरणा कांपै,
ढांणी अळगी
गाळै री गळांछ में
म्हारौ गेलौ देखै—
हेला मारै;
(सायत् औ मन रौ बैम है!)
म्हारै पगां हेठै
गेलौ नीं ऊजड़ है
सम्मक सूनियाड़...
अेक आंख दूजी नै पूछै
मन
मगज री क्याड़ी खड़कावै
अर मगज
सूनियाड़ में चिमक्यै
हिरण-सो चौकड़ियां भरै;
कठैई कीं खुड़कौ
कान चौकना कर
आंख्यां रा कोयां सूं
अबढौ अंधारौ कुचरूं;
टाबर तो
लप-दांणां सारू ठीकर संभाळै
धोतियै रा पल्ला झाटकै
अर म्हैं बिरादरी में
स्यांणी छोरी रै
सगपण री बात करूं!
चाणचक
आभै में बीजळी खिंवै
अळगौ कठैई
मारग व्हेण रौ बैम व्है
भाजूं
अर उथड़क र हेठौ पड़ूं
सिर रौ साफौ
कीकर बचावूं भिसळण सूं—
कादै रा छांटा
गाभां पर लाग जाय
तो जोर कांई?
कुण जांणै
जे बिल सूं नीकळ काळौ कालींदर
थोथ में बैठोड़ै बूढै बगत रै
फण मार दै
अर बगत रौ जैर
म्हारी जुबांन भी लाग जाय
तो आ मेह अंधारी रात—
सम्मक-सूनियाड़
कुण अंवेर करै म्हारी
वां गेला उडीकतां
भूखा-टाबरां री
दूंबै चढ जोवती बाट
धिराणी धापली री—
जिकां खातर जींवतौ हूं
आज भी
इण मेह अंधारी रात में
औ मन रौ बैम नीं
कड़वौ सांच है!