अलूंभौ दैवै मायड अेक,

लिखता कीकर आय लाजडी।

बोलता करै छै परहेज,

मायड आज मासा म्है पडी॥

चन्द कवियों रै कारणै,

म्हारौ बसियां थोरो प्राण।

जावतो ही चन्द कवि रै,

म्हारो हो जासी सुरगवास॥

अलूंभौ दैवै मायड अेक,

लिखता कीकर आय लाजडी।

अठै वीर जलम्या अनेक,

इह धरती उपजै संत सती॥

धरती कहीजै धरम धजाल,

पाथळ पीथळ रा बखाण।

गोरा बादल जयमल पतार,

कितरा रा गावू गुण गाण॥

ओलूंभौ दैती मावडी।

अलूंभौ दैवै मायड अेक,

लिखता कीकर आय लाजडी।

मिनखा रो थूरै हिवडै देक,

कितरी मायड लागै वाह्ली॥

मायड नै दैजो थै मान,

सगळा रै मन री पूरी करो।

सपनों कर् जो सै रो साकार,

सगळा गूंज सागै करो॥

ओलूंभौ दैती मावडी।

अलूंभौ दैवै मायड अेक,

लिखता कीकर आय लाजडी।

बोलता करै छै परहेज,

मायड आज मासा म्है पडी॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : रामाराम चौधरी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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