बोली तरसै बोलणियां नै,
मायड़ रा मोबी थां जागौ।
क्यूं परबोल्यां बपरावौ थां,
क्यूं मायड़ नै खूंट्या टांगौ॥
मूं मायड़ भासा थांरी हूं,
टाबरियां क्यूं अळगा भाजौ।
क्यूं ठाडी पड़गी मान्यता,
क्यूं नाहर सिरसा नह गाजौ॥
मूं बणी पांवणी निज घर मह,
बोल्यां दूजी बोलीजै है।
मूं किणनै पीड़ा जाय कहूं,
औ हियौ घणौ छोलीजै है॥
रणभोमी रौ बरणाव भणौ,
खणकै है सबदां करवाळां।
आखर आखर मह सूरां है,
केसरिया बागा धरबाळा॥
थां सुंणौ घणी भगती गाथा,
म्हनै सँत मसीहा गाई है।
मीरां करमां रै कंठ थयी,
गायोड़ी नानी बाई है॥
फड़ पाबू देवनरायण री,
गाईजै मायड़ भासा में।
छोरूंडा मन में मोद करो,
म्हैं गूंज रही हूं रासा में॥
क्यूं मांण घटै है कुळजुग मह,
क्यूं घर रा बाळक बिसरायी।
मन घणों अणेसो आवै है,
पग रोप लिया क्यूं परजायी॥
क्यूं जोध जुवानौ सरमावौ,
मायड़ नै गळै लगाबां मह।
क्यूं हरख हुवै नह हिवड़ै मां,
गीतां मायड़ नै गाबां मह॥
थां बोलौ छाती चवड़ी कर,
मायड़ भासा वपरा लीजौ।
पग रोप राज री छाती में,
मायड़ नैं मानता दे दिजौ॥
सरकार कदै ना सामळसी,
जे थांरौ अंतस मौनी है।
मायड़ भासा बेहालां है,
क्यूं दूजां सामी बौनी है॥
संतोष कहै सुणजौ सगळा,
हुंकार भरौ मायड़ सारू।
मानैला सह सत्ताधारी,
आ गूंजैली कूंटा चारूं॥