बैठ बातां करा

बातां करां परभात री

पौ फाटी रात री

परभात्या राग री

जद उठती ही मावड़ी

फैरती ही घट्टी

पिसती ही धान

आखा कुटम्ब रै खाण।

घट्टी री घरणाट संग गूंजती

गीतां री ओलियाँ

परभात री नींद में यूँ घुलती

जाणे

थपक्या देवती मावड़ी री

मीठी लोरियां।

सगळा सूं पछे सुवती

सगळा सूं पेहली उठती

साथण्यां ने केवती ही बाई

पेल कुकड़ो बोल्या उठे

सुवे मोटो तारो ऊग्या

वऊ म्हारी सपूत मायता री जाई।

कातीड़ा रै दिनां तो

कैइ दाण

गुवाड़ी रौ कुकड़ो तक उठतो

सुण घट्टी री घड़घड़ात

हड़बड़ार देवतो बाग

मोड़ो कीकर व्हैग्यो आज।

आ, फेर बातां करा

बाता करां आज री

आज रे परभात

मथारे चढ़िया सूरज राज री

जद उठे है जाया री धिवड़ी

सुण मोबाइल में

अलार्म धुन

नाटे है जिम

करे है कसरत

बहावे है पसीनो

खावे है नाप-नाप

फेर भी रोवे हर बगत

सेहत रौ रोवणों।

पण,

नब्बे री उमर में भी

चढ़ जावती ही मावड़ी

मंदर रा बावन पगोत्या

कुवां सूं भर लावती बेवड़ो

बगर थाक्या

काट लेवती गुवाड़ में

कैई चक्कर

पोता ने खांक में तोक्या।

कदी नी दिखी मावड़ी

वर्जिश करती

कदी नीं खायो नाप तोल

धाप खावणो

करणो धमक काज

यो ही मावड़ी री सेहत रौ राज।

पण जाया री धिवड़ी रै जीवन में

दिखे है

इणरौ ही अभाव आज।

स्रोत
  • सिरजक : अनुश्री राठौड़ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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