माटी रो तवो हंस्यो

उछाह उमंग में मां

देखो!

देखो टाबरो!

चक-चक दांत दिखावतो

अपणो तवो हंसतो जाय।

माटी रो तवो हंस्यो

टाबर-टोळी साथ

फूल्यो फलको देख’र

आज्यै प्यारा पांवणा

दादो सुगन मनाय।

मधरी-मधरी मां हंसी

मधरो-मधरो बाप

दादी बोली हुळस कै

घर आंगन आसी पांवणो

म्हारै तवा रोटी खाय।

फाळी-सी घर आडतो

विस्वासां रै पाण

दादी उचक उडीकती

सुख-दुख बतळाय।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : हरदान हर्ष ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी समिति
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