कैवै कै
मिनख नैं
जद रीस आवै
बीं रो सुर
ऊंचो हुय ज्यावै
साथै बण ज्यावै
माथै में तिरसूळ-सो
पण म्हैं कदै
बापूजी रै माथै पर
तिरसूळ नीं देख्यो
बठै तो फगत
रैंवता सळ
दादी कैंवता भी हा
अै सळ हुवै
अैनांण चिंत्या रा
हाईस्कूल रै बाद
अेक दिन
हिम्मत कर
म्हैं भी कैय दियो-
छोडो अब बापूजी,
इत्ती चिंत्या करणी
हूणी हुसी बा हुय ज्यासी।
बै कीं मुळकता-सा बोल्या-
थमज्या
बाप बणसी
जद ठाह पड़ैला
कै चिंत्या करीजै
या हुय ज्यावै आपैई।
केई बरसां पछै
आज म्हैं बेटो भी हूं
अर अेक बेटै रो बाप भी
आज खेल-खेल में
बेटो म्हारै माथै पर
हाथ फेरतो पूछयो
बापूजी।
थांर माथै में
आखै दिन
इत्ता सळ
क्यूं पड़या रैवै?