केई जणा

कैया करै

मन मारणो आवणो चाइजै

पण

मन मार्‌यां पछै

आपां रैय जासां?

इणनै मार’र

हत्या किणरी करी

अपणै आपरी?

केई जणा

कैया करै

मन घणो उछांछळो है

इण माथै

लगाम राखणी चाईजै

पण मन तो मिनख री

सवारी करै।

सही है

मन सूं हारणो नीं चाइजै

पण

जीत भी कुण सक्यो

आज तांई?

इण वास्तै

इणनै मारो मत

ना लगाम लगावण री

जुगत करो

हारण-जीतण रो तो

सवाल कोनी।

अेक तरीको है

मन सूं करो

भायलाचारो

फेर देखो

थासूं सीखसी भी

अर सीखासी भी।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : आनंद पुरोहित ‘मस्ताना’ ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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