अेकाअेक धरमसास्तर
री पोथी रै मांय सूं अेक पानौ
बिसतर माथै
झड़ग्यौ
नै सरूपचंदजी निस्कारी न्हाखनै
बोल्या
म्हारै देस में तो काळ पड़ग्यौ!
वा सोनांगाछी री कोई बंगालण ही
के गुजरातण कै मराठण
निस्कारौ सुणतां ई कैवण लागी:
सेठां! अबै थांरै में दम कोनी रयौ
सरूपचंदजी आखता होयनै दम्मै री सांकळ
बजावण लाग्या
कुचर- कुचर दाफड़ री खाज मिटांवण लाग्या
थोड़ी ताळ पछै भोग-भगती सूं
वां रौ मन फाटग्यौ
मुनीम वां रै नांव रा रिपिया
गाभा-लत्ता
अर नाज रा दांणा
मरुधर-मंगळ मुलक में सगळै बांटग्यौ
आ दातारी दैखनै
काळ ने सरम आयी
वौ कूवौ- दरड़ौ करण सारू
'प्लांन' बणावण लाग्यौ
ढ़ांणी- ढ़ांणी ढ़ोलीड़ां रौ गोट
सरूपचन्दजी रौ जस ढ़मकांवण लाग्यौ!
जियां वां रौ जमांरौ सूदरयौ-
सगळां रौ सूदरै
जिया मारवाड़ रा दिन फिरया
सगळां रै फिरै
(इत्तौ दान-पुन्न करतां थकांई जे लोग नुगरा होयनै मरै तो सरूपचंदजी कांई करे!)