कैवती जे आपणो ब्याह नीं हुयो

तो जको पैलो रिस्तो आसी

थरप लेसूं उण नैं भरतार

अर जामस्यूं थारै जैड़ा टींगर च्यार।

जद जद आसी ओळूं थारी

रोज कूटस्यूं च्यारां नै बारी बारी!

भलोक!

स्रोत
  • सिरजक : दुष्यंत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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