माणस तो है एक बटोही
जीवण बी रो है मरुथळ।
पार नीं ई तिरसणा रो
चलतां सगळो ज्याव बळ।
मिरग तिरसणा तो आस जगावै
बी री मन री प्यास बढावै
पकड़ लंगोटी दौड़ लगावै
पावै अठ नित नूवां छळ।
माणस तो है एक बटोही
जीवण बी रो है मरुथळ।
कागद री ईं में नाव चलावै
मन रा घोड़ा घणा दौड़ावै
पण गेलो कठै नी पावै
छिण पें ज्यावै सुरज ढ़ळ।
जीवण बी रो है मरुथळ।
खुद र हाथां बेल लगावै
ज्यूं आंटा में फंसतो ज्यावै
भोळो माणस टेम गवावै
हाथां स्यूं जावै रेत फिसळ।
जीवण बी रो है मरुथळ।