तड़के तड़के ठंडी बयार

हळद रंग सज्यो संसार

चहचहाता चड़ी चुगला,

बादळा, नदी की धारा

निरखतां

मन मं आई

सब तो आजाद फरे छै

पण मनख

घुट र'यो पीड़ा

दन अर रात

आजाद मन को मालक

जीव जगत मं सबसूं अकलमंद

फेर क्यूं

कर सक्यो कदी भी मनचिति

घणों लड़ल्यो आपणा-परायां सूं

प्रकृति सूं अर ईश्वर सूं भी

जत्ती पूरी होती गी

बत्ती बढ़ती ही गी

मन इच्छा

धरती की सूरत बगाड़,

चाँद पूग ग्यो

पण हो सक्यो

खुश

आजाद

छोड़ सक्यो

छल

पाखण्ड

दोगलोपण

अकड़ की गठरी

सब जानतां बुझतां

खुद ही खुद को गुलाम

मनख बावळो

स्रोत
  • सिरजक : प्रीतिमा ‘पुलक’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै