तड़के तड़के ठंडी बयार
हळद रंग सज्यो संसार
चहचहाता चड़ी चुगला,
बादळा, नदी की धारा
निरखतां
मन मं आई
सब तो आजाद फरे छै
पण मनख
घुट र'यो छ पीड़ा म
दन अर रात
आजाद मन को मालक
जीव जगत मं सबसूं अकलमंद छ न
फेर क्यूं
न कर सक्यो कदी भी मनचिति
घणों लड़ल्यो आपणा-परायां सूं
प्रकृति सूं अर ईश्वर सूं भी
जत्ती पूरी होती गी
बत्ती बढ़ती ही गी
मन इच्छा
धरती की सूरत बगाड़,
चाँद प पूग ग्यो
पण न हो सक्यो
खुश
आजाद
छोड़ न सक्यो
छल
पाखण्ड
दोगलोपण
अकड़ की गठरी
सब जानतां बुझतां
खुद ही खुद को गुलाम
मनख बावळो