मां म्हारी सदा ही कहन करै है कि
सुहागन के हाथ पग मेंहदी सूं रचा तो
सिन्दूर सूं मांग भरपूर भरी रहया करै है
बड़गर खातिर जीकारा निकले
छोटां कै खातिर स्नेह बहा करै है
मां म्हारी सदा ही कहन करै है कि
रोटी बीते ना कदै कटोरदान सूं जदै
धान से कनस्तर भरा रहा करै है
घर आये गये का मान घणा कर
फैर चाय खान खातिर भी पूछा करै है
मां म्हारी सदा ही कहन करै है कि
जीवन में सुख दुःख तो आता जाता रहेला
पर पूछे कोई थ्हांणे हाल चाल तो
फैर कुशलक्षेम ही कहा करै है
मां म्हांरी सदा ही कहन करै है कि
पैल पोत रोटी जानवर की तो
जै दूजी होवे चिड्डी चुग्गा की
तदै ही भरपेट मानुष जीमा करै है
माँ म्हारी सदा ही कहन करै है कि
बिश्वास सूं बड़ौ कोई विकल्प कौनी है
और परिवार सूं बडौ कोई धन कौनी है
ई धन सूं ही हियै रौ सन्दूक लकदक
खज़ाना सूं भरिया रिईयां करै है...
बड़भाग होवे जदै बुढ़ापा में सन्तान कै
नाम सूं मां बाप नै जानिया करै है...
मां को कहन म्हैं सदा ही मानूं हूं
साच्ची म्हें मां म्हारी अेक अमोघ मंत्र है
जाकै नाम सूं ही पीड़ा हर जाया करै है
माँ म्हारी पैल शिक्षक उण रै सीख सूं
म्हारी क्षमता दोगुणी हो जाया करै है
नमन ऐड़ी मां ने जो अमरत म्हानै
पीलान खातिर खुद गरल पी जाया करै है...