माँ रो मानणो हो कै

घरां सूं मीठो खावण रै पछै व्हीर नीं हूणो।

फीटेड़ो हुज्यावै नींतर।

मान्या करती भोत घणा माँ सूण

व्हीर हुवतां खुवाती ही माँ लूण

कदै आधी-पूरी म्हैं कदै मानी पूण

अब तो चीणी चाख्याँ हुयगी जूण

इण मोटा स्हैर मांय

बरसां पछै झलकिया लक्खण फीटेड़ा रा।

तो आज म्हारै की सूं हुयो फीटेड़ो?

सुण!

थारा होठां रै मांय चीणी ही कांई?

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कबीर चारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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