मावड़ी क्यूं करी

म्हनै पराई

दान-दहेज अर

पइसा देय’र म्हनै

नौकराणी बणाई

मावड़ी क्यूं करी म्हनै पराई?

थूं म्हनै

दुनिया में लाई

गोद में खिलाई

थूं तो म्हारी है जणणी

कोई थारी पीड़ नीं जाणी

जद-जद म्हारी थनै

याद आवै

थारी आंख्यां भरीज जाय

मां!

थूं दान-दहेज अर

पइसा देयनै

म्हनै नौकराणी बणाई

मावड़ी क्यूं करी

म्हनै पराई?

माथै छळकै गागर अर

गोद में टाबर

दोनूं मचळै

अेक रोवै

दूजो छळक-छळक जावै

दोनूं म्हनै भिगोवै है

दोनूं म्हनै भिगोवै है

दोनूं नै छोड नीं पावूं

अेक में जिंदगी

दूजै में म्हारी जान

पाळ-पोख नै दूजा नैं

संपूंण री

मावड़ी जग में

कुण रीत बणाई

याद म्हारी आवै तो

थारो जी भीजै

हवा रा झोंका

तूफानां री मार

जिंदगी मांय आया

भंवर सूं कीकर बचूंली

दिन बीत जावै

रात अंधारी चालती रैवूं

जिंदगी छोटी पण सफर लंबो

हर सांस में

म्हैं म्हारो वजूद म्हारै मांय

बेटी बण जाय

तद म्हैं दूजी वजूद बण

पराया घर

उणनैं परणाय देऊंली

पण अेक सवाल

ज्यूं रो त्यूं कोई

जवाब नीं

मां पईसा देय’र

क्यूं बेटी नैं

काळजै रै टुकड़ै नैं

दान-दहेज देय

घर लुटाय

म्हनै नौकरानी बणाई

क्यूं मावड़ी...क्यूं?

कुण रीत बणाई।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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